हिमालय पर्वत-श्रेणी (The Himalayas)
हिमालय पर्वत पश्चिम में नंगा पर्वत से लेकर पूर्व में नामचा बरवा तक धनुष की आकृति में पैफला हुआ है। इन दोनों ही स्थानों पर हिमालय में दो तीखे मोड़ (Syntaxial Band) स्थित हैं। इस मोड़ का निर्माण प्रायद्वीपीय पठार की विशिष्ट आकृति के कारण हुआ है। अरावली श्रेणी तथा शिलांग पठार के प्रक्षेपित होने के क्रम में इन मोड़ों का निर्माण हुआ है। दबाव बल की अपेक्षाकृत कम तीव्रता के कारण हिमालय का पश्चिमी भाग अपेक्षाकृत अधिक चैड़ा एवं कम ऊँचा है। इस भाग में हिमालय की अनेक शाखाएँ हैं। पूर्वी भाग में दबाव के अधिक तीव्र होने के कारण हिमालय की तीनों श्रेणियाँ आपस में मिली हुई प्रतीत होती हैं हिमालय का पूर्वी भाग न केवल सर्वाधिक ऊँचा है बल्कि इसकी ढाल भी अधिक तीव्र है। इस पर्वत श्रेणी की ढाल असीमित है अर्थात् इसकी दक्षिणी ढाल उत्तरी ढाल की तुलना में अधिक तीव्र है।हिमालय का निर्माण भारतीय सह-आॅस्ट्रेलियाई प्लेट एवं यूरेशियाई प्लेट के अभिसरण प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ है। अभिसरण-क्रिया के अंतर्गत सापेक्षतः हल्के घनत्व के यूरेशियाई प्लेट का अग्रभाग वलित हो गया जिससे हिमालय का निर्माण हुआ। वस्तुतः इन दोनों प्लेटों का अभिसरण अभी भी जारी है, परिणामस्वरूप हिमालय अभी भी क्रमशः उँफचा हो रहा है। यही कारण है कि हिमालयी क्षेत्रा में अभी भी निरंतर भूकंप आते रहते हैं।
हिमालय पर्वत-श्रेणी को तीन भागों में विभाजित किया जाता है -
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